Tuesday, October 21, 2025

रेलवे में महिलाओं के लिए पूरी सुरक्षा कब तकसुनिश्चित होगी?

सोशल मीडिया ओर समस्या या शिकायत गंभीर संकेत है 

रेल में बिना किसी रुकावट के सुरक्षित सफर सभी के लिए कब सुनिश्चित होगा?  यह सवाल कई बरसों से लगातार बना हुआ है। फिलहाल आम जनता के साथ साथ तो महिलाओं की शिकायतें भी अक्सर आती रहती हैं जिनके लिए सर्कार ने कई बार कदम उठाने का दावा भी किया है। रेलवे के पास सुरक्षा बल भी हैं और शिकायतें प्राप्त करने और उन्हें दूर करने का आवश्यक ताम झाम भी। इसके बावजूद समस्या हल क्यूँ नहीं होती। सोशल मीडिया में सामने आई यह तस्वीर तो बस उस असुविधा की एक छोटी सी मिसाल भर ही है। बारीकी से नज़र रखी जाए तो बहुत से और मामले भी निकल आएंगे। 

बच्चे को गोद  में लिए चेन्नई रेलवे स्टेशन
पर एक महिला-संकेतक Pexels तस्वीर
जिसे क्लिक किया Anish Aloysious ने 

इस संबंध में बहुत सी शिकायतें अक्सर दिख ही जाती हैं। भारतीय रेल में महिलाओं को सुरक्षा, शौचालय और सीटों को लेकर कई दिक्कतें और परेशानियाँ होती हैं। असुरक्षा और छेड़छाड़ का डर, शौचालय की सुविधा की कमी, लंबी यात्राओं के दौरान असुविधा, और आरएसी (RAC) टिकट पर पुरुषों के साथ सीट आवंटन जैसी समस्याएं आम हैं। हालांकि, रेलवे इन दिक्कतों को दूर करने के लिए सुरक्षा उपाय जैसे "मेरी सहेली" अभियान और हेल्पलाइन नंबर 182, और सीटों के लिए प्राथमिकता जैसे उपाय कर रहा है। मीडिया में भी इस तरह की ख़बरें आती रहती हैं फिर भी इन्हें नज़र अंदाज़ करने वाले लोग कौन हैं? क्यूँ उनकी खबर नहीं ली जाती?

मुख्य दिक्कतें और परेशानियाँ कई तरह की हैं जिनमें सुरक्षा संबंधी चिंताएँ लगातार कायम हैं। 

अकेले यात्रा करने वाली महिलाओं के लिए असुरक्षा और उत्पीड़न का खतरा अक्सर अधिक रहता है। इस तरह की नज़र और नीयत रखने वालों को कानून से भी कोई डर क्यूं नहीं लगता? क्या कोई सिफारिश आड़े आ जाती है या फिर सबूत नहीं मिल पाते?

आरएसी टिकट पर महिला यात्रियों को अजनबी पुरुषों के साथ सीट आवंटित कर दी जाती है, जो एक बड़ी तकनीकी समस्या है। इस तरफ कौन और कब ध्यान देगा? वैसे तो महिला डिब्बे भी अलग होने चाहिए और संभव हो तो पूरी ट्रेन भी। आरएसी का मतलब "Reservation Against Cancellation" (रद्दीकरण के विरुद्ध आरक्षण) है। इसका मतलब है कि आपको ट्रेन में यात्रा करने की अनुमति है, लेकिन आपकी सीट कन्फर्म नहीं होती और आपको इसे किसी अन्य आरएसी यात्री के साथ साझा करना पड़ता है। आप ट्रेन में एक सीट पर बैठने के लिए अधिकृत होते हैं, और यदि कोई कन्फर्म यात्री अपनी टिकट रद्द करता है, तो आपको खाली बर्थ मिल सकती है। 

इसी तरह सीटों से संबंधित समस्याएँ भी कम नहीं हैं। महिलाओं को अक्सर ऊपर की बर्थ मिलती है, जिसे चढ़ने-उतरने में परेशानी होती है, खासकर बुजुर्गों या गर्भवती महिलाओं को। हालांकि यह सब कम्प्यूटरीकृत सिस्टम में भी शामिल हो सकता है। इस सहमति को हर महिले यात्री की मर्ज़ी पर भी छोड़ा जा सकता है। 

समस्या और भी है कि आरएसी/वेटिंग टिकट कन्फर्म होने पर महिला कोच का विकल्प अक्सर उपलब्ध नहीं होता। ऐसे में कुछ वैकल्पिक प्रबंधों पर भी विचार होना चाहिए।  

साथ ही बुनियादी सुविधाओं की कमी भी अक्सर खलती है। स्टेशनों पर शौचालय की कमी या दूरी एक आम समस्या है, जिससे महिलाओं को असुविधा होती है। बरसों से चल रही है विकास की कोशिशें अब तक तो यह समस्या पूरी तरह से खत्म हो जानी चाहिए थी। समस्याएं और मुद्दे और भी हैं लेकिन उनकी चर्चा करेंगे किसी अलग पोस्ट में बहुत जल्दी। फिलहाल इस पोस्ट पर आपके विचारों की इंतज़ार रहेगी ही। 

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